जपजी साहिब हिंदी लिरिक्स पीडीएफ | Japji Sahib Hindi PDF Download
PDF Name | जपजी साहिब हिंदी पाठ PDF | Download Japji Sahib Lyrics In Hindi |
No. Of Pages | 56 |
PDF Size | 1.5 MB |
PDF Language | Hindi |
Catagory | Religion & Spirituality |
Source | Agragami.in |
Download Link | Given here |
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जपजी साहिब क्या है | What is Japji Sahib Hindi
मित्रों आज हम आपके साथ जपजी साहिब का संपूर्ण हिंदी पाठ की लिरिक्स आपके साथ शेयर करने वाले हैं, लेकिन उससे पहले आप इसकी बॉडी में कुछ महत्वपूर्ण बातें जान लेना बहुत ही जरूरी है।
जपजी साहिब सिखों के लिए सबसे पवित्र और गुरु की वंदना करते के लिए सबसे असरदार स्तुति मंत्र है। गुरु ग्रंथ साहिब का शुरुआत ही होता है जपजी साहिब के वर्णना के साथ। इसलिए ग्रंथ साहिब का पाठ करने के लिए जपजी साहिब का पाठ करना ही परता है।

एक समय ऐसा था जब सिखों के साथ-साथ बहुत हिंदू भक्त भी पवित्र जपजी साहिब का नियमित रूप से पाठ करते थे। क्योंकि उनको इस स्तुति मंत्र की अलौकिक क्षमता के ऊपर विश्वास था। आज भी कुछ हिंदू इस जपजी साहिब का पाठ करते हैं।
लेकिन इसकी हिंदी में उच्चारण करने की माध्यम की कमी होने के वजह से, बहुत सारे लोग इसकी श्लोक और शब्दों की सटीक उच्चारण नहीं कर पाते थे, इसलिए इसका लोकप्रियता भी धीरे-धीरे कम होने लगी। और लोग इसकी वजह से जपजी साहिब का पूरा लाभ भी नहीं उठा पाते थे।
इसलिए हिंदी माध्यम में जपजी साहिब का आवश्यकता बहुत बढ़ जाती है, जिसकी आवश्यकता भक्तों यहां से पूरी कर सकते हैं इस पोस्ट में से जपजी साहिब का डाउनलोड करके भक्तों जपजी साहिब का नियमित रूप से पाठ और इसकी लाभ उठा सकते हैं।
जपजी साहिब संपूर्ण हिंदी लिरिक्स | Japji Sahib Full Hindi Lyrics
नमूना के लिए यहां पर जपजी साहिब का कुछ पौड़ी या श्लोक और उसके हिंदी अर्थ दिया गया है। और संपूर्ण जपजी साहिब का 38 श्लोक और उसकी हिंदी अर्थ पीडीएफ में दिया गया है:
ੴ सत नाम करता पुरख निरभओ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ॥
॥ जप ॥
आद सच जुगाद सच ॥
है भी सच नानक होसी भी सच ॥१॥
मूलार्थ: जप करो। (इसे गुरु की वाणी का शीर्षक भी माना गया है)। निरंकार (अकाल पुरुष) सृष्टि की रचना से पहले सत्य था, युगों के प्रारंभ में भी सत्य (स्वरूप) था। अब वर्तमान में भी उसी का अस्तित्व है, श्री गुरु नानक देव जी का कथन है भविष्य में भी उसी सत्य स्वरूप निरंकार का अस्तित्व होगा। ॥1॥
सोचै सोच न होवई जे सोची लख वार ॥
चुपै चुप न होवई जे लाए रहा लिव तार ॥
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
सहस सिआणपा लख होहे त इक न चलै नाल ॥
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पाल ॥
हुकम रजाई चलणा नानक लिखिआ नाल ॥१॥
मूलार्थ: यदि कोई लाख बार शौच (स्नानादि) करता रहे तो भी इस शरीर के बाहरी स्नान से मन की पवित्रता नहीं हो सकती। मन की पवित्रता के बिना परमेश्वर (वाहेगुरु) के प्राप्ति विचार भी नहीं किया जा सकता। यदि कोई एकाग्र चित्त समाधि लगाकर मुंह से चुप्पी धारण कर ले तो भी मन की शांति (चुप) प्राप्त नहीं हो सकती; जब तक कि मन से झूठे विचार नहीं निकल जाते। बेशक कोई जगत की समस्त पूरीयों के पदार्थ को ग्रहण कर ले तो भी पेट से भूखे रहकर (व्रत आदि करके) इस मन की तृष्णा रूपी भूख को नहीं मिटा सकता। चाहे किसी के पास हजारों लाखों चतुराई भरे विचार हो लेकिन यह सब अहंयुक्त होने के कारण परमेश्वर तक पहुंचने में भी सहायक नहीं होते। अब प्रश्न पैदा होता है कि फिर परमात्मा के समक्ष सत्य का प्रकाश पुंज कैसे बना जा सकता है? सत्य रूप होने का मार्ग बताते हुए श्री गुरु नानक देव जी कथन करते हैं- यह सृष्टि के प्रारंभ से ही लिखा चला आ रहा है कि ईश्वर के आदेश अधीन चलने से ही सांसारिक प्राणी यह सब कर सकता है। ||1||
हुकमी होवन आकार हुकम न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवन जीअ हुकम मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतम नीच हुकम लिख दुख सुख पाईअह ॥
इकना हुकमी बखसीस इक हुकमी सदा भवाईअह ॥
हुकमै अंदर सभ को बाहर हुकम न कोए ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हओमै कहै न कोए ॥२॥
मूलार्थ: (सृष्टि की रचना में) समस्त शरीर (निरंकार के) आदेश द्वारा ही रचे गए थे, किंतु उसके आदेश को मुंह से शब्द निकालकर ब्याई नहीं किया जा सकता। परमेश्वर के आदेश से (इस धरा पर) अनेकानेक योनियों में जीवो का सृजन होता है, उसी के आदेश से ही मान-सम्मान (अथवा ऊंच-नीच का पद) प्राप्त होता है। परमेश्वर (वाहेगुरु) के आदेश से ही जीभ श्रेष्ठ अथवा निम्न जीवन प्राप्त करता है, उसके द्वारा ही लिखे गए आदेश से जीव सुख और दुख की अनुभूति करता है। परमात्मा के आदेश से ही कई जीवो को कृपा मिलती है कई उसके आदेश से आवागमन के चक्र में फंसे रहते हैं। उस सर्वोच्च शक्ति परमेश्वर के आधीन ही सब कुछ रहता है, उससे बाहर संसार का कोई कार्य नहीं है। हे नानक! यदि जीभ उस अकाल पुरुष के आदेश को प्रसन्नचित्त होकर जान ले तो कोई भी अहंकारमयी मैं का वश में नहीं रहेगा। यही अहंतत्व सांसारिक वैभव में लिप्त पानी को निरंकार के निकट नहीं होने देता। ||2||
गावै को ताण होवै किसै ताण ॥
गावै को दात जाणै नीसाण ॥
गावै को गुण वडिआईआ चार ॥
गावै को विद्या विखम वीचार ॥
गावै को साज करे तन खेह ॥
गावै को जीअ लै फिर देह ॥
गावै को जापै दिसै दूर ॥
गावै को वेखै हादरा हदूर ॥
कथना कथी न आवै तोट ॥
कथ कथ कथी कोटी कोट कोट ॥
देदा दे लैदे थक पाहे ॥
जुगा जुगंतर खाही खाहे ॥
हुकमी हुकम चलाए राहो ॥
नानक विगसै वेपरवाहो ॥३॥
मूलार्थ: कोई उसे अपने अंग संग जानकर उसकी महिमा गाता है। अनेकानेक ने उसकी कीर्ति का कथन किया है किंतु फिर अन्त नहीं हुआ। करोड़ों जीवने उसके गुणों का कथन किया है, फिर भी उसका वास्तविक स्वरूप आया नहीं जा सका। अकाल पुरुष दाता बनकर जीव को भौतिक पदार्थ (अथक) देता ही जा रहा है, (परंतु) जीव लेते हुए थक जाता है। समस्त जीव युगो युगो से इन पदार्थों का भोग करते आ रहे हैं। आदेश करने वाले निरंकार की इच्छा से ही (संपूर्ण सृष्टि के) मार्ग चल रहे हैं। श्री गुरु नानक देव जी सृष्टि के जीवो को सूचित करते हुए कहते हैं कि वह निरंकार (वाहेगुरु) चिंता रहित होकर (इस संसार के जीवो पर) सदैव प्रसन्न रहता है। ||3||
साचा साहिब साच नाए भाखिआ भाओ अपार ॥
आखह मंगह देहे देहे दात करे दातार ॥
फेर कि अगै रखीऐ जित दिसै दरबार ॥
मुहौ कि बोलण बोलीऐ जित सुण धरे प्यार ॥
अमृत वेला सच नाओ वडिआई वीचार ॥
करमी आवै कपड़ा नदरी मोख दुआर ॥
नानक एवै जाणीऐ सभ आपे सचिआर ॥४॥
मूलार्थ: वह अकाल पुरुष (निरंकार) अपने सत्य नाम के साथ स्वयं भी सत्य है, उस (सत्य एवं सत्य नाम वाले) को प्रेम करने वाले ही अनंत कहते हैं। (समझते देव, दायित्व, मनुष्य तथा पशु इत्यादि) जीभ कहते रहते हैं, मांगते रहते हैं, (भौतिक पदार्थ) दे दे करते हैं, वह दाता (परमात्मा) सभी को देता ही रहता है। अब प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि (जैसे अन्य राजा- महाराजाओं के समक्ष कुछ भेंट लेकर जाते हैं वैसे ही) उस परिपूर्ण परमात्मा के समक्ष क्या वेट ले जाया जाए कि उसका द्वार सरलता से दिखाई दे जाए? जुबान से उसका गुणगान किस प्रकार का करें कि सुनकर वह अनंत शक्ति (ईश्वर) हमें प्रेम प्रसाद प्रदान करें? इनका उत्तर गुरु महाराज स्पष्ट करते हैं कि प्रभात काल (अमृत वेला) मैं (जिस समय व्यक्ति का मन आमतौर पर सांसारिक उलझन उसे विरक्त होता है) उस सत्य नाम वाले अकाल पुरुष का नाम स्मरण करें और उसकी महिमा का गान करें, तभी उसका प्रेम प्राप्त कर सकते हैं। (इससे यदि उसकी कृपा हो जाए तो) गुरुजी बताते हैं कि कर्म मात्र से जीव को यह शरीर रूपी कपड़ा अर्थात मानव जन्म प्राप्त होता है, इससे मुक्ति नहीं मिलती, मोक्ष प्राप्त करने के लिए उसकी कृपामई दृष्टि चाहिए। हे नानक! इस प्रकार का बोध ग्रहण करो कि वह सत्य स्वरूप निरंकार ही सर्वस्व है इससे मनुष्य की समस्त संकाये मिट जाएगी। ||4||
थापेआ न जाए कीता न होए ॥
आपे आप निरंजन सोए ॥
जिन सेविआ तेन पाया मान ॥
नानक गावीऐ गुणी निधान ॥
गावीऐ सुणीऐ मन रखीऐ भाओ ॥
दुख परहर सुख घर लै जाए ॥
गुरमुख नादं गुरमुख वेदं गुरमुख रहेआ समाई ॥
गुर ईसर गुर गोरख बरमा गुर पारबती माई ॥
जे हओ जाणा आखा नाही कहणा कथन न जाई ॥
गुरा इक देहे बुझाई ॥
सभना जीआ का इक दाता सो मै विसर न जाई ॥५॥
मूलार्थ: वह परमात्मा किसी को द्वारा मूर्त रूप में स्थापित नहीं किया जा सकता, ना ही उसे बनाया जा सकता है। वह मायातीत होकर स्वयं से ही प्रकाशमान है। जिस मानव ने उस ईश्वर का नाम स्मरण किया है उसी ने उसके दरबार में सम्मान प्राप्त किया है। श्री गुरु नानक देव जी का कथन है कि उस गुणों के भंडार निरंकार की बंदगी करनी चाहिए। उसका गुणगान करते हुए, प्रशंसा सुनते हुए अपने ह्रदय में उसके प्रति श्रद्धा धारण करें। ऐसा करने से दुखों का नाश होकर घर में सुखों का वास हो जाता है। गुरु के मुंह से निकला हुआ शब्द ही वेदों का ज्ञान है, वही उपदेश रूपी ज्ञान सभी जगह विद्यमान है। गुरु ही शिव, विष्णु, ब्रह्मा और माता पार्वती है, क्योंकि गुरु परम शक्ति है। यदि मैं उस सर्गुण स्वरूप परमात्मा के बारे में जानता भी हो तो उसे कथन नहीं कर सकता, क्योंकि उसका कथन किया ही नहीं जा सकता। हे सच्चे गुरु! मुझे सिर्फ यही समझा दो की समस्त जीवो का जो एकमात्र दाता है मैं कभी भी उसे भूल ना पाऊं। ||5||
तीरथ नावा जे तिस भावा विण भाणे कि नाए करी ॥
जेती सिरठि उपाई वेखा विण करमा कि मिलै लई ॥
मत विच रतन जवाहर माणेक जे इक गुर की सिख सुणी ॥
गुरा इक देहे बुझाई ॥
सभना जीआ का इक दाता सो मै विसर न जाई ॥६॥
मूलार्थ: तीर्थ स्नान भी तभी किया जा सकता है यदि ऐसा करना उसे स्वीकार हो, उषाकाल पुरुष की इच्छा के बिना में तीर्थ स्नान करके क्या करूंगा, क्योंकि फिर तो यह सब अर्थहीन ही होगा। उस रचयिता के पैदा की हुई जितनी भी सृष्टि में देखता हूं, उसमें कर्मों के बिना ना कोई जीव कुछ प्राप्त करता है और ना ही उसे कुछ मिलता है। यदि सच्चे गुरु का मात्र एक ज्ञान ग्रहण कर लिया जाए तो मानव जीव की बुद्धि रत्न, जवाहर व माणिक्य जैसे पदार्थों से परिपूर्ण हो जाए। हे गुरु जी! मुझे सिर्फ यही बोध करवा दो कि सृष्टि के समस्त प्राणियों को देने वाला निरंकार मुझसे विस्तृत ना हो। ||6||
जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होए ॥
नवा खंडा विच जाणीऐ नाल चलै सभ कोए ॥
चंगा नाओ रखाए कै जस कीरत जग लेए ॥
जे तिस नदर न आवई त वात न पुछै के ॥
कीटा अंदर कीट कर दोसी दोस धरे ॥
नानक निरगुण गुण करे गुणवंतेआ गुण दे ॥
तेहा कोए न सुझई ज तिस गुण कोए करे ॥७॥
मूलार्थ: यदि किसी मनुष्य अथवा योगी की योग साधना करके चार युगो से दश गुना अधिक, अर्थात चालिश लोगों की आयु हो जाए। नवखंडो (पौराणिक धर्म ग्रंथों में वर्णित इलाबृत, किंपुरुष, भद्र, भारत, केतूमाल, हरि, हीरन्य, रम्य और कुश) मैं उसकी कीर्ति हो, सभी उसके सम्मान में साथ चले। संसार में प्रख्यात पुरुष बन कर अपनी शोभा का गान करवाता रहे। यदि अकाल पुरुष की कृपा दृष्टि में वह मनुष्य नहीं आया तो किसी ने भी उसकी क्षेम नहीं पूछनी। इतने वैभव तथा मान-सम्मान होने के बावजूद भी ऐसा मनुष्य परमात्मा के समक्ष कीटो में क्षुद्र कीट अर्थात अधम समझा जाता हैं, दोषयुक्त मनुष्य भी उसे दोषी समझेंगे। गुरु नानक जी का कथन है कि वह असीम शक्ति निरंकार गुण इन मनुष्य को गुण प्रदान करता है और गुणी मनुष्य को अतिरिक्त गुणवान बनाता है। परंतु ऐसा कोई और दिखाई नहीं देता, जो उस गुणों से परिपूर्ण परमात्मा को कोई गुण प्रदान कर सके। ||7||
सुणिअै सिध पीर सुर नाथ ॥
सुणिअै धरत धवल आकास ॥
सुणिअै दीप लोअ पाताल ॥
सुणिअै पोहे न सकै काल ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥८॥
मूलार्थ: परमात्मा का नाम सुनने, अर्थात उसकी कीर्ति में अपने ह्रदय को लगाने के कारण ही सिद्ध, पीर, देव तथा नाथ इत्यादि को परम पद की प्राप्ति हुई है। नाम सुनने से ही पृथ्वी, उसको धारण करने वाले वृषभ (पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जो धोला बेल इस फूलों को अपने सिंगो पर टिकाए हुए हैं) तथा आकाश के स्थायित्व की शक्ति का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। नाम सुनने से शाल्मली, क्रौंच, जंबू, पलक आदि सप्त द्वीप: भू भव, स्व, आदि चौदाह लोक तथा अतल वितल सुतल आदि सातों पातालो की अंतर्यमता प्राप्त होती है। नाम सुनने वाले को कॉल स्पर्श भी नहीं कर सकता। हे नानक! प्रभु के भक्त मैं सदैव आनंद का प्रकाश रहता है, परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुखों व दुष्कर्म का नाश होता है। ||8||
सुणिअै ईसर बरमा इंद ॥
सुणिअै मुख सालाहण मंद ॥
सुणिअै जोग जुगत तन भेद ॥
सुणिअै सासत सिम्रित वेद ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥९॥
मूलार्थ: परमात्मा का नाम सुनने से ही शिव, ब्रह्मा तथा इंद्र आदि उत्तम पदवी को प्राप्त कर सके हैं। मंदे लोग यानी कि बुरे कर्म करने वाले मनुष्य भी नाम को श्रवण करने मात्र से प्रशंसा के लायक हो जाते हैं। नाम के साथ जोड़ने से योग आदि तथा शरीर के विशुद्ध, मनीपूरक, मूलाधार आदि षट्चक्र के रहस्य का बोध हो जाता है। नाम सुनने से शट शास्त्र (संख्य, योग, न्याय आदि), सत्ताईस स्मृतियों तथा चारों वेदों का ज्ञान उपलब्ध होता है। हे नानक! संत जनों के ह्रदय में सदैव आनंद का प्रकाश रहता है। परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुखों व दुष्कर्म का नाश होता है। ||9||
सुणिअै सत संतोख ज्ञान ॥
सुणिअै अठसठ का इसनान ॥
सुणिअै पड़ पड़ पावहे मान ॥
सुणिअै लागै सहज ध्यान ॥
नानक भगता सदा विगास ॥
सुणिअै दूख पाप का नास ॥१०॥
मूलार्थ: नाम सुनने से मनुष्य को सत्य, संतोष व ज्ञान जैसे मूल धमों की प्राप्ति होती है। नाम को सुनने मात्र से समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ अठसठ तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। निरंकार के नाम को सुनने के बाद बार-बार रचना पर लाने वाले मनुष्य को उसके दरबार में सम्मान प्राप्त होता है। नाम सुनने से परमात्मा में लीनता सरलता से हो जाती है, क्योंकि इससे आत्मिक शुद्धि होकर ज्ञान प्राप्त होता है। हे नानक! प्रभु के भक्तों को सदैव आत्मिक आनंद का प्रकाश रहता है। परमात्मा का नाम सुनने से समस्त दुखों व दुष्कर्म का नाश होता है। ||10||
जपजी साहिब पाठ के फायदे | Benefits of Chanting Japji Sahib Hindi
जपजी साहिब को ज्यादातर सुबह की समय में ही पाठ्य जप किया जाता है, इसका पूरा रचना 38 श्लोक में बटा हुआ है, इन सब लोग को मिलाकर जब जी साहिब संपूर्ण होता है। इसकी हर एक श्लोकी अपनी ही महत्व है, जपजी साहिब का नियमित पाठ करने के बहुत सारे फायदे हैं, जैसे:
- जपजी साहिब का पाठ से व्यक्ति की मन शांत और निर्मल हो जाता है, वह मन में परम स्थिरता का अनुभव करता है।
- मन में से हर तरह की नकारात्मक चीजों से छुटकारा पाने के लिए जपजी साहिब का सुबह की समय में पाठ बहुत लाभदाई होता है।
- सिर्फ सिख धर्मावलंबी भक्ति ही नहीं बल्कि किसी भी धर्म की व्यक्ति जपजी साहिब का पाठ खुले दिल से कर सकते हैं, क्योंकि ईश्वर अपने हर संतानों को एक ही नजर से देखते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
- जपजी साहिब का नियमित पाठ आपकी जीवन को शत्रुओं की प्रकोप से दूर रखते हैं।
- जपजी साहिब का आध्यात्मिक प्रभाव आपकी शरीर रोग और व्याधि से मुक्त करके और बलवान बनाता है।
- मन को कठिन और अब किसी दे को दयालु बनाता है।
- जपजी साहिब के पाठ से आप प्रतिदिन की काम में अत्याधिक उद्यम और तत्परता महसूस करते हैं।
- इसकी पाठ से अबकी जीवन में धन और संपत्ति कभी लाभ होने की संभावना बढ़ जाती है।
- आपकी जीवन हर ओर से सुख और शांति से भरपूर होके रहता है।
डाउनलोड जपजी साहिब हिंदी PDF | Download Japji Sahib Hindi Lyrics PDF
FAQs – Japji Sahib Path PDF in Hindi
1. जपजी साहिब हिंदी पाठ कहां से डाउनलोड करें – From where I can Download Japji Sahib Hindi PDF?
आप जपजी साहिब का संपूर्ण हिंदी पाठ यहां से डाउनलोड कर सकते हैं – you can Download Japji Sahib Hindi Path from here.
2. जपजी साहिब हिंदी लिरिक्स कैसे डाउनलोड करें – How to Download Japji Sahib Lyrics In Hindi PDF?
आप जपजी साहिब हिंदी में इस पोस्ट में से डाउनलोड कर सकते हैं – you can Download Japji Sahib in Hindi from this post.
3. जपजी साहिब क्या है – What is Japji Sahib Hindi?
जपजी साहिब गुरु नानक की वंदना करने की सबसे असरदार स्तुति मंत्र है, संपूर्ण जपजी साहिब लिरिक्स और इसकी लाभ जान ले।
4. जपजी साहिब पाठ के फायदे क्या है – What are the Benefits of Chanting Japji Sahib Hindi?
जपजी साहिब पाठ के संपूर्ण फायदे और नुकसान भी यहां से जान ले।